एक सच्चा हिंदू
जइसे ऊधो वइसे भान, यही कहावत याद आती है. जब देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों की लड़ाई के दर्शन होते हैं. अरे एक सबसे बूढ़ी पार्टी कांग्रेस. दूसरी सबसे बड़ी मिसकाल वाली पार्टी बीजेपी. बीजेपी में कोई उड़ा दिहिस कि राहुल गांधी हिंदू नहीं हैं. कांग्रेस वाले उनकी जनेऊ वाली फोटो दिखा दिहिन. यहां तक कि सोमनाथ मंदिर वाली पर्ची भी. काहे कि वहां कोई गैर हिंदू नहीं जा सकता. तो राहुल गांधी हिंदू हैं. जितना स्टुपिडात्मक इल्जाम था उतना ही बेवकूफास्टिक उस पर सफाई देना है. मतलब क्या चल रहा है कुछ समझ ही नहीं आ रहा. दो राष्ट्रीय स्तर के नेता कुकुर झौं झौं में पड़े हैं, साल 2017 है और बात हो रही है कि अगला हिंदू है या नहीं. किसी को ये नहीं दिख रहा कि पेट्रोल, प्याज और टमाटर 80 रुपए किलो हो गया है.
बात चल ही निकली है तो बहती गंगा में कलाई तक हाथ धो लेना चाहिए. इसलिए बेमतलब हम भी अपना पॉइंट पेश कर रहे हैं. भैया आदमी जब तक ऑफिशियली कोई दूसरा धर्म स्वीकार नहीं कर लेता तब तक वो या तो अपने पिता के धर्म वाला होता है या मम्मी के. राहुल के पिता राजीव गांधी फिरोज गांधी के बेटे थे. फिरोज पारसी फैमिली से आते थे. राहुल की मम्मी इटली की रोमन कैथलिक क्रिश्चियन फैमिली से आती हैं. और अच्छे खाते पीते घर की हैं. रेस्टोरेंट में वेटर वाली कहानी डस्टबिन में फेंक दो. तो फैमिली के हिसाब से तो राहुल गांधी हिंदू नहीं होते. यहां बताने का मतलब ये नहीं है कि ले उड़ो. भला आदमी होना किसी भी इंसान के धर्म से ऊपर की चीज है. गब्बर सिंह वाले काम करोगे तो गंगा नहाने भर से पाप नहीं धुलेंगे. राहुल गांधी को जनेऊ दिखाने या अपने को शिवभक्त बताने की जरूरत नहीं थी. धर्म जाति की राजनीति से बोर हुए लोग ही कांग्रेस का वोट बैंक हैं, उनको राहुल के धर्म से क्या लेना देना.
अगर बीजेपी के सामने खुद को साबित करना है तो भी हार ही जाएंगे राहुल. बेसिर पैर के सवाल करने वाले के सामने कोई कब तक टिकेगा? ये आदमी याद है? फिल्म जुदाई का. इसके सवालों का जवाब क्या दोगे? राहुल गांधी के सामने आकर खड़ा हो जाए तो उनका झाग निकल जाए.